इस रिपोर्ट में जानिए आखिर कितना खतरनाक है पुणे में फैल रहा गिलां बारे सिंड्रोम

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, गिलां बारे सिंड्रोम यानी जीबीएस एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी ही तंत्रिकाओं पर हमला करने लगती है. इस सिंड्रोम की वजह से मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकाएं प्रभावित हो सकती हैं. इसके अलावा दर्द, तापमान और छूने से पैदा होने वाले अहसासों को ट्रांसमिट करने वाली तंत्रिकाओं पर भी प्रभाव पड़ सकता है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, जीबीएस के चलते मांसपेशियों में कमजोरी महसूस हो सकती है और हाथ-पैरों में कुछ भी महसूस होना बंद हो सकता है. करीब एक तिहाई लोगों में इससे छाती की मांसपेशियां प्रभावित होती हैं, जिससे सांस लेने में मुश्किल आती है. इसके लक्षण कई हफ्तों तक बने रह सकते हैं. सभी उम्र के लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं लेकिन व्यस्कों और पुरुषों में इसके होने की आशंका ज्यादा होती है.
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पुणे में सामने आए हैं 81 मामले
महाराष्ट्र के पुणे और उसके आसपास के क्षेत्रों में गिलां बारे सिंड्रोम के 100 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से 16 मरीज फिलहाल वेंटिलेटर पर हैं. आकाशवाणी मुंबई ने अपने एक्स अकांउट पर महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग का प्रेस नोट साझा किया है. इसके मुताबिक, अब तक मिले मरीजों में से 81 मरीज पुणे के हैं. वहीं, 14 मरीज पिंपरी चिंचवाड़ और छह अन्य जिलों से हैं. मरीजों में 68 पुरुष और 33 महिलाएं हैं.
एनडीटीवी की एक खबर के मुताबिक,गिलां बारे सिंड्रोम से पीड़ित एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी है. खबर में मरीज के रिश्तेदारों के हवाले से बताया गया कि ये मरीज पुणे में रहते थे और कुछ दिन पहले सोलापुर जिले में स्थित अपने गांव गए थे. वहां उनकी तबीयत खराब हो गई जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जांच में पता चला कि वे गिलां बारे सिंड्रोम से पीड़ित हैं. शनिवार को उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी और उनकी मौत हो गई.
कैसे फैलता है गिलां बारे सिंड्रोम
साल 1916 में फ्रांस के न्यूरोलॉजिस्ट जॉर्ज गिलां, जौं अलैक्सांद बारे और ऑन्द्रे स्त्रोल ने दो फ्रांसीसी सैनिकों में इस सिंड्रोम के लक्षणों की पहचान की थी. बाद में गिलां और बारे के नाम पर इसे गिलां बारे सिंड्रोम नाम से जाना जाने लगा.
डब्ल्यूएचओ की फैक्ट शीट में बताया गया है कि जीबीएस के फैलने की वजह को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है. लेकिन ज्यादातर मामलों में वायरस या बैक्टीरिया के इन्फेक्शन के बाद ऐसा होता है. डॉक्टर मरीज के लक्षण देखकर और तंत्रिका संबंधी जांच के परिणामों के आधार पर इसकी पहचान करते हैं.